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स्वास्थ्यमंत्री को बस्तर बाला ने भेंट किया आयुष हर्बल क्वाथ का पहला पैक

बस्तर में उगाई पेड़ों पर परिपक्व हुई शुद्ध जैविक 'काली मिर्च' भी की गई भेंट देखकर बेहद प्रसन्न हुए स्वास्थ्य मंत्री

स्वास्थ्य मंत्री  ने आयुष हर्बंल क्वाथ की पैकिंग और क्वालिटी सर्टिफिकेट्स की तारीफ

स्वास्थ्य मंत्री टी एस सिंहदेव ने 'मां दंतेश्वरी हर्बल फार्म तथा रिसर्च सेंटर ' देखने  कोंडागांव आने का किया वादा

आयुष मंत्रालय  के दिशा निर्देशों के अनुरूप बस्तर कोंडागांव की मां दंतेश्वरी हर्बल समूह' ने बना डाला कोरोना वायरस लड़ने में सहायक 'आयुष क्वाथ, हर्बंल काढ़ा, कुड़िनीर'

बस्तर के जैविक खेतों में उगाई गई काली मिर्च दालचीनी तुलसी तथा अदरक से तैयार किया या अंगूठा हर्बल काढा,

रोगों से लड़ने की क्षमता बढ़ाता है यह शत् प्रतिशत जैविक 'एम्यून बूस्टर'

बीते शनिवार को स्वास्थ्य मंत्री श्री टी एस सिंहदेव को बस्तर बाला अपूर्वा ने उनके निवास कार्यालय में 'आयुष क्वाथ' हर्बंल काढ़ा का पहला पैक भेंट किया, साथ ही बस्तर में उगाई पेड़ों पर परिपक्व हुई शुद्ध जैविक 'काली मिर्च' भी उन्हें भेंट की।

बस्तर की मा दंतेश्वरी हर्बल समूह की काली मिर्च की क्वालिटी को देखकर स्वास्थ्य मंत्री बेहद प्रसन्न हुए और उन्होंने आशा व्यक्त की कि अब वह दिन दूर नहीं जब बस्तर तथा छत्तीसगढ़ इस काली मिर्च के लिए भी जाना जाएगा। 

स्वास्थ्य मंत्री ने आयुष हर्बंल क्वाथ की पैकिंग और क्वालिटी सर्टिफिकेट्स की भी तारीफ करते हुए शीघ्र ही कोंडागांव स्थित 'मां दंतेश्वरी हर्बल समूह फार्म तथा रिसर्च सेंटर' देखने आने का अपूर्वा से वायदा भी किया है।

यूं तो बीते शनिवार यानी कि 10 अक्टूबर का दिन कई मायनों में विलक्षण रहा एक तो यह तारीख महीना तथा वर्ष का विलक्षण योग ता फिर दोबारा आने से रहा। 

इसी तरह छत्तीसगढ़ प्रदेश के इतिहास में भी कोंडागांव के 'मां दंतेश्वरी हर्बल समूह' ने बस्तर के अंतर्राष्ट्रीय प्रामाणिकता प्राप्त जैविक खेतों में उगाई काली मिर्च दालचीनी अदरक तथा तुलसी के विलक्षण संयोग से कथा आयुष मंत्रालय भारत सरकार तथा आयुष मंत्रालय छत्तीसगढ़ सरकार के मार्गदर्शन में कोरोना कैसे बीमारियों से लड़ने में मदद करने वाली 'इम्यून बूस्टर' 'आयुष क्वाथ' अर्थात हर्बल काढ़ा बना ही डाला। 

इसका पहला उत्पाद का पहला पैक मा दंतेश्वरी हर्बल समूह की गुणवत्ता नियंत्रण तथा उत्पादन प्रमुख अपूर्वा त्रिपाठी ने प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री को उनके निवास कार्यालय में जाकर सादर भेंट किया। 

मां दंतेश्वरी समूह में इस उत्पाद के लिए  पेटेंट भी हासिल कर लिया है। अब अपूर्वा अपने समूह के उत्पादों के लिए विदेशी बाजार में पैर जमाने की कोशिश  कर रही है। 

देश के सबसे पिछड़े तथा संवेदनशील क्षेत्र कहे जाने वाले बस्तर में अपनी साथी आदिवासी महिलाओं के साथ काम करते हुए विभिन्न देशों के खरीदारों से गुणवत्ता को लेकर विभिन्न भाषाओं में अपूर्वा को बहस करते देखकर लोगों को यकीन नहीं होता कि यह वही लड़की है जो बस्तर के खेतों में आदिवासी महिलाओं के साथ कंधा मिलाकर खेती कर रही थी। 

अपूर्वा का कहना है कि, विदेशी जैविक हर्बल खेती से जुड़े समूहों  को देश विदेश के कारपोरेट के साथ अगर सफल कारोबारी रिश्ते कायम करना है, तो इसके लिए कारपोरेट के स्थापित नियम कायदों मापदंडों तथा उनकी क्रियाविधि को समझना भी बेहद जरूरी है। 

देश बस्तर के धुर आदिवासी गांव में जन्मी तथा पली - बढ़ी अपूर्वा त्रिपाठी कुछ जुदा ही सख्शियत हैं. अपूर्वा ने प्रतिष्ठित कलिंगा विश्वविद्यालय से स्नातक, विधि स्नातक की डिग्री लेने के पश्चात 'बौद्धिक संपदा अधिकार' विषय में एलएलएम की भी डिग्री हासिल की, इतने पर ही संतोष नहीं किया व्यवसायिक विधि में महाराष्ट्र विश्वविद्यालय से दूसरा एलएलएम भी उच्च श्रेणी में किया और  अंतरराष्ट्रीय बौद्धिक संपदा संरक्षण कानून, अंतरराष्ट्रीय कारपोरेट लॉ में डिप्लोमा किया है। 

अभी भी उन्होंने शिक्षा की साधना जारी रखते हुए, वह बस्तर की आदिवासी महिलाओं के कानूनी अधिकारों की चेतना पर जागृत हेतु शोध भी  कर रही हैं। 

छत्तीसगढ़ के सबसे ज्यादा पिछड़े अंचल बस्तर के कोंडागांव जिले के ग्राम चिखलपुटी और आसपास के गांवों की करीब 400 आदिवासी महिलाएं ‛मां दंतेश्वरी हर्बल समूह’ से जुड़ी हैं, जिसकी अध्यक्ष दशमति नेताम हैं, जो स्वयं बस्तर की एक आदिवासी महिला है।

अपूर्वा अपनी  कैरियर के शरुआत के बारे में बताती है कि करीब 25 साल पहले देश के जाने-माने वनोषधीय कृषक डॉ राजाराम त्रिपाठी ने इस गांव के आसपास की महिलाओं को जोड़कर समूह की स्थापना की। 

पहले दालचीनी फिर काली मिर्च सहित दर्जनों प्रकार की भारतीय दुर्लभ जड़ी बूटियां आज समूह द्वारा उगाई जा रही हैं। इसके कुछ वर्षों बाद स्टीविया और इंसुलिन की भी खेती शुरू हुई। 

इस खेती से आदिवासियों की आमदनी बढ़ोत्तरी हुई और उनके जीवनस्तर में सुधार आया। आज मां दंतेश्वरी समूह ने अपने कार्यों से न केवल राज्य में बल्कि पूरे देश में एक अलग छवि बना पाया है और इसमें कोंडागांव के आदिवासी समुदाय के पुरुष व महिलाओं को महत्वपूर्ण योगदान है।

डॉ राजाराम त्रिपाठी के मार्गदर्शन व मेरे देखरेख में आदिवासी महिलाओं ने प्रति कप एक रुपये की कीमत में ऐसी जबरदस्त हर्बल चाय भी बनाई है, जो कि कोरोना सहित 16 से अधिक बीमारियों से बचने में मदद करती है।

इसके बाद का पड़ाव बेहद महत्वपूर्ण है। जब देश में कोरोना ने अपने पैर पसारे तो अपूर्व ने कुछ नया करने की ठान ली उन्होंने भारत सरकार के आयुष मंत्रालय द्वारा जारी गाइड लाइन के तहत बस्तर के खेतों में उगाई जड़ी बूटियों से कोरोना से लड़ाई में बेहद मददगार माना गए माना जाने वाला एम्यून बूस्टर आयुष 'हर्बल क्वाथ' ही बना डाला। 

अपने उत्पादन की गुणवत्ता हेतु उन्होंने भारत सरकार के  खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण के प्रमाण पत्र के साथ ही 'विश्व स्वास्थ्य संगठन' डब्ल्यूएचओ  का प्रमाण पत्र भी हासिल किया है। 
उन्होंने कहा कि हमारा लक्ष्य है की कोरोना से लड़ने वाली इस हर्बल दवाई की गुणवत्ता सर्वोत्तम हो कीमत भी आम परिवार की पहुंच में हो।

अपूर्वा का कहना है कि उन्होंने यह तय किया है कि वह मां दंतेश्वरी हर्बल समूह के माध्यम से आदिवासी समुदाय को समाज के मुख्यधारा से जोड़ेंगी तथा देश में उनकी एक नई पहचान स्थापित करेंगी, इसी लिए आदिवासियों की पारंपरिक कृषि तकनीक के जरिये वह वनोषधियों की खेती, संरक्षण, संवर्द्धन पर अपना ध्यान केंद्रित कर रही है। 

मां दंतेश्वरी हर्बल समूह के द्वारा संयुक्त राष्ट्र द्वारा रेड डेटा बुक में शामिल अनेकों प्रजातियों की जड़ी-बुटियों का उनके नैसर्गिक वातावरण में स्थलों मेडिको गार्डन बनाकर, संरक्षण - संवर्द्धन किया जा रहा है, जो कि हर्बल विज्ञान के शोधार्थियों के लिए बहुत ही उपोयोगी साबित हो रहा है. 

जिस उम्र पर युवा अपना कैरियर की तलाश में लगे रहते हैं उस उमर में अपूर्वा अपने जैसे सैकड़ों युवाओं को रोजगार उपलब्ध करा रही हैं, तथा नई राहें दिखा रही हैं। 
mdhorganic@gmail.com

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