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औकात...

बरसात का मौसम था, नदी, नाले, कुएं, बावडी़, तालाब सभी यौवन के उफान पर थे, तभी एक 'नाला' अपने पूरे उफान के साथ नदी तक पहुँचा  और उसके कंधों पर चढ़कर अपनी यौवन की  मस्ती के साथ सागर के पास पहुँच गया ! 

सागर का विशाल रूप और उसकी उस भव्यता को देख नाला भौचक्का रह गया, उसने सागर से बडे़ गर्व के साथ  कहा 'मैं आपसे एक विनंती करना चाहता हूँ, नाले ने अभिमान के साथ कहा 'मै आपके  कुल के साथ  सम्बध जोडना चाहता हूँ, आपके परिवार में कोई भी सुदंर कन्या हो तो उससे विवाह करना चाहूँगा।

नाले  की बात सुन सागर मुस्कराया और नाले से  बोला - 'मुझें  कोई  आपत्ति  नहीं... लेकिन हमारे  यहाँ विवाह आदि ग्रीष्म ऋतु में होते हैं यदि उस  समय आप विवाह प्रस्ताव लेकर आवेंगे तो इस पर  विचार किया जा सकता है!

नाला खुशी से गदगद्  हो गया और बडे़ घमण्ड से बोला - 'ठीक है आप तैयार रहे मै ग्रीष्म में आता हूँ ! 'सागर ने भी नाले को यह कहकर बिदा किया कि 'आपकी प्रतिक्षा रहेगी, आप महानुभाव अपने इसी  रूप में ही पधारिये' ! 

समय निकला ग्रीष्म ऋतु आ गई, नदी नालों का अस्तित्व भी विलुप्त हो गया, अब नाला अपने पूवँ रुप को खो चुका था, ना वो उस उफान भरे यौवन को ला सकता था, ना वो रूप, नाला एक ठंडी सांस भरकर रह गया, अपना रंग रूप खो चुका था, विवाह की इच्छा मन में ही रह गई ! 

अब नाला चेता उसे समझ में आया की क्यों सागर ने उसे ग्रीष्म ऋतु में आकर विवाह के लिये प्रस्ताव लाने को कहा था.! ?

- रति चौबे, नागपुर, महाराष्ट्र

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