जीवन की समस्याओं को समझदारी से करें हल
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- शरद गोपीदासजी बागडी, नागपुर
(अंतरराष्ट्रीय - राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त लेखक व समाजसेवी).
हर इंसान के जीवन मे परेशानियां, समस्याएं, तकलीफें आती रहती हैं। हमारी समझदारी यह होती हैं कि हम सारी समस्याओं को समय पर आकलन कर व समझकर उसका हल निकाल लें तो आगे तकलीफ कम होगी व हम अपनी उर्जा, शक्ति सकारात्मक कार्यों में लगा सकेंगे।
कुछ समस्याएं परिस्थितियों वश होती हैं व समय जाने पर स्वतः समाप्त हो जाती हैं लेकिन कुछ समस्याओं को समय पर समझकर सुलझाना जरूरी होता है क्योंकि समय जाने पर समस्या और विकराल रूप लेती जाती हैं।
एक दस वर्षीय लड़का रोज अपने पिता के साथ पास की पहाड़ी पर सैर को जाता था। एक दिन लड़के ने कहा, पिताजी चलिए आज हम दौड़ लगाते हैं, जो पहले चोटी पे लगी उस झंडी को छू लेगा वो रेस जीत जाएगा ! पिताजी तैयार हो गए।
दूरी काफी थी, दोनों ने धीरे - धीरे दौड़ना शुरू किया। कुछ देर दौड़ने के बाद पिताजी अचानक ही रुक गए। क्या हुआ पापा, आप अचानक रुक क्यों गए, आपने अभी से हार मान ली क्या ?,
लड़का मुस्कुराते हुए बोला। नहीं - नहीं, मेरे जूते में कुछ कंकड़ पड़ गए हैं, बस उन्ही को निकालने के लिए रुका हूँ।, पिताजी बोले। लड़का बोला, अरे, कंकड़ तो मेरे भी जूतों में पड़े हैं, पर अगर मैं रुक गया तो रेस हार जाऊँगा…, और ये कहता हुआ वह तेजी से आगे भागा।
पिताजी भी कंकड़ निकाल कर आगे बढे, लड़का बहुत आगे निकल चुका था, पर अब उसे पाँव में दर्द का एहसास हो रहा था, और उसकी गति भी घटती जा रही थी। धीरे-धीरे पिताजी भी उसके करीब आने लगे थे।
लड़के के पैरों में तकलीफ देख पिताजी पीछे से चिल्लाये, क्यों नहीं तुम भी अपने कंकड़ निकाल लेते हो ? मेरे पास इसके लिए टाइम नहीं है ! लड़का बोला और दौड़ता रहा।
कुछ ही देर में पिताजी उससे आगे निकल गए। चुभते कंकडों की वजह से लड़के की तकलीफ बहुत बढ़ चुकी थी और अब उससे चला नहीं जा रहा था, वह रुकते - रुकते चीखा, पापा, अब मैं और नहीं दौड़ सकता !
पिताजी जल्दी से दौड़कर वापस आये और अपने बेटे के जूते खोले, देखा तो पाँव से खून निकल रहा था। वे झटपट उसे घर ले गए और मरहम-पट्टी की।
जब दर्द कुछ कम हो गया तो उन्होंने समझाया, बेटे, मैंने आपसे कहा था ना पहले अपने कंकडों को निकाल लो फिर दौड़ो।
मैंने सोचा मैं रुकुंगा तो रेस हार जाऊँगा !
बेटा बोला। ऐसा नही है बेटा, अगर हमारी लाइफ में कोई प्रॉब्लम आती है तो हमे उसे ये कह कर टालना नहीं चाहिए कि अभी हमारे पास समय नहीं है।
दरअसल होता क्या है, जब हम किसी समस्या को अनदेखी करते हैं तो वो धीरे-धीरे और बड़ी होती जाती है और अंततः हमें जितना नुक्सान पहुंचा सकती थी उससे कहीं अधिक नुक्सान पहुंचा देती है।
तुम्हे पत्थर निकालने में मुश्किल से 1 मिनट का समय लगता पर अब उस 1 मिनट के बदले तुम्हे 1 हफ्ते तक दर्द सहना होगा। पिताजी ने अपनी बात पूरी की।
दोस्तों हमारा जीवन ऐसी तमाम कंकडों से भरा हुआ है l शुरू में ये समस्याएं छोटी जान पड़ती है और हम इन पर बात करने या इनका समाधान खोजने से बचते हैं, पर धीरे - धीरे इनका रूप बड़ा हो जाता है l
जीवन के कई बार हम ऐसे मोड पर खडे होते है जहाँ हमें दो गलत मे से एक गलत को चुनना पड सकता है अर्थात एक तरफ कुँआ दुसरे तरफ खाई रहती हैं।
ऐसे समय हमें अपनी बुद्धि, विवेक के आधार पर अपने दिल की बात सुनना चाहिए। समस्याओं को तभी पकडिये जब वो छोटी हैं वर्ना देरी करने पर वे उन कंकडों की तरह आपका भी खून बहा सकती हैं।