शक्ति स्वरूपा...
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आज अचानक इस समय और इस विकराल रुप में निमाई को देख मैं स्तब्ध थी। कुछ घबराहट भी हुई।उनके हाथ पैर कांप रहे थे। मैंने दोनों हाथ पकड़ पहले उन्हें आराम से बैठा, ठंडा पानी दिया।और फिर धीरे से पूछा
क्या बात है निमाई, क्या हुआ ?
वे एकदम जोर, जोर से बोलने लगी, देखो मैंने सब कुछ कहा जो मुझे कहना था। क्या करती, मुझसे रहा ही नहीं गया। अब चाहे वे मुझसे संबंध रखें या न भी रखें, मुझे अपने घर बुलाएं, ना बुलाएं। पर निमाई हुआ क्या, आप किसकी बात कर रही है ? उनका हाथ सहलाते हुए मैंने पूछा।
वे बोली आज हमारे बडे़ घर में महालक्ष्मी का पूजन था। इस पूजा में कुटुंब के सबलोग भाग लेते हैं पर उसे हां घर की बहू को ही इस पूजा में भाग लेने से रोका जा रहा था। किसी ना किसी काम से उसे बाहर भेज दिया जाता ताकि पूजा रुम में वह प्रवेश भी न कर सके।
अपने बिगडे़ बेटे के लिए बहू के रुप में उसे अपनाते हुए उसकी जाति का विचार बिल्कुल नहीं आया। तब सहर्ष स्वीकार कर लिया। उसने न केवलपति के चाल चलन को सुधारा, सबकी सेवा भी की। शादी के बाद प्रायः वे बाहर ही रहे ,पर आज जब इसपूजा के अवसर पर आए ही है तो निषेध क्यों, कयों ? उधर पंडित जी महालक्ष्मी का मंत्र पढ़ रहे है...
या देवी सर्व भूतेशु लक्ष्मी रूपेण संस्थिता।
और इधर गृह लक्ष्मी की आंखों में आंसू ! मैं नहीं सह पाई। नहीं देखा गया मुझसे कह दिया मैंने जो कुछ कहना था। और चली आई अपने घर।
वयोवृद्ध निमाई के अनुचित के विरोध में शक्ति प्रदर्शन से मन गर्व से भर उठा। मैंने धीरे से उनके हाथ थपथपाए।
- प्रभा मेहता, नागपुर, महाराष्ट्र