सत्य के सामीप्य...
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- यशवंत भंडारी 'यश', झाबुआ, म. प्र.
आत्म आल्हाद से मन हो
सरोबार
मन कॊ जीता तॊ,
जग कॊ जीता
इस महामंत्र कॊ
करो स्वीकार
आत्म स्वरूप के
बोध से
आत्म संयम कॊ
करो अंगीकार
आत्म आल्हाद से
मन हो सरोबार।
जय का भी पराजय मे
हो जाता पल मे परिवर्तन
आत्म विजेता बनकर
नित्य करो आत्मालोकन
विजय पथ पर चलकर
हो हर राह सुखकार
आत्म आल्हाद से
मन हो सरोबार
अपनी मर्यादा का,
हो हर पल आभाष
हर प्राणी की पीड़ा का
खुद भी करे अहसास
करुणा के भाव जगाकर
करे सबका उपकार
आत्म आल्हाद से
मन हो सरोबार
धन, बल और ज्ञान का
न हो कभी अभिमान
नश्वर हे ये जगत की माया
हर पल करो यह ध्यान
सानिध्य मिले गुणीजनो का
करो अवगुणों का सवहार
आत्म आल्हाद से
मन हो सरोबार
करुणा का कल्पवृक्ष
अपने आंगन मे लगाये
हरे जो मन का तमस
वो अंतरज्योति प्रगटाये
आवेश के आवेग कॊ तजकर
सदभाव की बहे बयार
आत्म आल्हाद से
मन हो सरोबार।