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लेखक को लिखने के लिए पढ़ना जरूरी : चतुर्वेदी

नागपुर। लेखक को लिखने के लिए पढ़ना जरूरी है। यह बात वरिष्ठ व्यंग्यकार डाॅ. ज्ञान चतुर्वेदी ने व्यंग्यधारा की ‘समकालीन व्यंग्य : आज और कल की पीढ़ी की व्यंग्य - दृष्टि का मूलभूत अंतर’ विषय पर आनलाइन वीडियो गोष्ठी में कही। 

उन्होंने कहा कि परसाई की पीढ़ी ने व्यंग्य की सिर्फ नींव ही नहीं रखी, वरन मकान भी बनाया, पर वर्तमान पीढ़ी उस पर दूसरी मंजिल बनाने में असमर्थ दिख रही है, क्योंकि वह मानवीय मूल्यों, सरोकारों से अलग अपने को व्यक्त करने में व्यस्त है।

इसके पूर्व इस व्यंग्य - विमर्श में आज की पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करते हुए व्यंग्यकार शशिकांत ‘शशि' ने कहा कि इस समय व्यंग्यकार मौन है। 

पुरानी पीढ़ी और आज की पीढ़ी भी मौन में अपना भविष्य देख रही है। इतिहास में इस तरह का मौन महाभारत का कारण बन जाता है। 

आज गांव, किसान, मजदूर, महिला, व्यंग्य के विषय से बाहर हो गए हैं। अब स्त्री, हिंदी व्यंग्य में मनोरंजन के रूप में आती है।

विमर्श की शुरुआत में विषय के औचित्य पर विषय प्रवर्तन करते हुए व्यंग्यकार रमेश सैनी ने कहा कि पहले लेखक जैसे लिखता था, वैसा अपने व्यवहार में दिखता था। 

वह सदा पीड़ित के पक्ष में दिखाई देता था, पर आज की पीढ़ी सत्ता पक्ष की विकृतियों को देख कर मुंह मोड़ लेती है। 

व्यंग्य आलोचक डां. रमेश तिवारी ने गोष्ठी का संचालन करते हुए आज के विमर्श के औचित्य पर कहा कि आज व्यंग्य में जो परिदृश्य दिख रहा है ऐसे समय में यह विमर्श जरूरी हो जाता है। 

आनलाइन गोष्ठी में देश के विभिन्न क्षेत्रों से अपना प्रतिनिधित्व करते हुए व्यंग्यकार कैलाश मण्डलेकर, ईश्वर शर्मा, राजेंद्र वर्मा, शांतिलाल जैन, अनूप शुक्ल, बुलाकी शर्मा, दिलीप तेतरबे, ओम वर्मा, पिलकेन्द्र अरोरा, मलय जैन, कुमार सुरेश, प्रभाशंकर उपाध्याय, सुनील जैन राही, ब्रज श्रीवास्तव, रामस्वरूप दीक्षित, प्रमोद ताम्बट, संतोष त्रिवेदी, जयप्रकाश पाण्डेय, विवेकरंजन श्रीवास्तव, सुधीर कुमार चौधरी, वीरेंद्र सरल, राकेश सोहम, टीकाराम साहू ‘आजाद’, डॉ. स्नेहलता पाठक, अल्का अग्रवाल सिगतिया, वीना सिंह, रेणु देवपुरा, इंद्रजीत कौर, कमलेश पाण्डेय, कुमारी अर्पणा, डा. महेंद्र ठाकुर, तीरथ सिंह खरबंदा, अभिमन्यु जैन, एमएम चंद्रा, नवीन जैन, हनुमान मुक्त, अभिजीत कुमार दबे आदि ने सक्रिय भागीदारी की। 

दोनों वक्ताओं ने सवालों के विस्तार से जवाब देकर सभी की जिज्ञासाओं को शांत करने की कोशिश की। व्यंग्यकार राजशेखर चौबे ने आभार माना।

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