बंदी...
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- संजय बर्वे, नागपुर, महाराष्ट्र
बंदी, बंदी. बंदी... ।
कभी इसकी बंदी तो कभी उसकी। बस हर जगह नाकाबंदी। तिसपर हुई नोटबंदी। आम जनता का जीवन तो जैसे इन बंदी में ही जैसे तैसे गुजर रहा है ना। अब आ टपका है सभी बंदीयो का बाप !
हाय कोरोना, बाप रे बाप। ये करो ना, वो करो ना। क्या क्या करो ना, ये समझो ना। न्यूज चॅनल पर ध्यान धरो ना । मोदीजी को सुनो ना। सावधानी बरतना, फिर डरो ना। हर कोई घरो में बंद। घुमना बंद, सैर सपाटा बंद।
मिलना जुलना बंद। घुमने पर पुलीस के डंडे खाओ ना। पुलीस बल आया, पुलीस की गाडी आई, भागो ना। ऐसे भागने में तो जैसे कईयो को ओलीम्पिक के रिकार्ड तोडने का मौका मिला ना। घर बन गये बंदिशाला, बिवि बन गयी जेलर।
घर के सभी काम करो ना, तभी खाना पाओ ना। पती के फरमाईशो का दौर खत्म हुआ ना । जो बना के खिला दे उसी में गुजारा हो रहा हा। किस्मतवालो के लजीज खाने की फरमाईशो ने कहर ढाया है, बिवियो ने अपने आप को तंग पाया। बैठे बैठे खा - खाके लोगो की तोंद फुल रही । शर्ट के बटन लगने से डर रही।
नाभी झांक - झांक कर मुस्कुरा रही । पेट की अतडिया सकपका गान गा रही । ऐसे से घर में ही प्रदूषण को हवा मिल रही। कई तरह के चिजो पर बंदी। आवाजाही पर पाबंदी। रेल बंद, बसे बंदश। होटल बंद। जीम बंद। पर दारूबंदी नही । फुल रही मधुशाला है। खुलेआम बिक्री चल रही। सरकार रीव्हेन्यू कमा रही।
शायद सरकार इसी पर ही तो चल रही है। दारुबाजो की ईधर चलती है और उधर घरवालो के परेशानी में बढोत्तरी ही बढोत्तरी। पुलीसवाले भी बहुत परेशान ! बोले कैसा जमाना आया है ? अब मधुशालाओ की ड्युटी करनी पड रही।
गिरते पडते पीयक्कडो को लाईन में सिधे करना पड रहा। ये देवदास ही तो कोरोना को हरायेगे । तीसपर न पीनेवाले पुलीसवाले के हाल बेहाल है । उनकी तो वहा शामत है। पहले क्या कम बदनाम थे । वहा खडा देख के घरवाली का शक और भी अंजाम दे रहा है।
कोरोना ने पर्यटन व्यवसाय का सत्यानाश कर दिया। हनिमून पॅकेजेस का धंदा गुल कर दिया। रसिले मसखरे जानकार तो यही कहते है की जनसंख्या की अब तो बहुत वृद्धी होगी। हमारे लोग मौके का फायदा उठाने में माहिर है।
हम यह मौका नही छोडेंगे। जनसंख्या वृद्धी में चीन को भी मात देंगे। हमे चीन से युद्ध करने की जरूरत ही क्या है, ऐसे चीन के चाल का मुहतोड जवाब देंगे। कोरोना को हराकर ही दम लेंगे।