पुस्तक समीक्षा : लॉक डॉउन का भारत
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विश्व पर आई कोरोना महामारी ने किसी भी देश को नहीं छोड़ा। उसमें भारत भी एक सबसे ज्यादा प्रभावित देशों की सूची में दूसरे स्थान पर हैं। देश में कोरोना महामारी की वजह से पूरे सभी कार्यों को ठप कर देना पड़ा। पूरा देश मानो रुक सा गया था। इसी दौरान मजदूरों के पलायन की पीड़ा से द्रवित होकर लेखक राजेन्द्र सिंह यादव 'आज़ाद' को बंटवारे का चित्र आंखों के सामने दिखने लगा। परिणाम यह हुआ की 20 मार्च से 31 मई 2020 तक की हर गतिविधि को उन्होंने अपनी संकल्पना से पुस्तक रूप में पिरोया। जिसका नाम उन्होंने दिया 'लॉक डाउन का भारत '। पूरा देश लॉक डाउन की चपेट में था। सरकार से लेकर स्थानीय प्रशासन तक इस महामारी से जूझने का प्रयास कर रहे थे। डॉक्टर, पुलिस कर्मी, सफाई कर्मी, स्वयंसेवी संस्थाएं पूरी तरह लोगो की सेवा में तत्पर थे। ऐसे में ही मजदूरों के अपने गांव वापस लौटने की प्रक्रिया ने जोर पकड़ा। उस पलायन के चित्र को पूरे देश में अलग-अलग लेखकों ने कलम बद्ध किया। हर लेखक की कलम से मजदूर की पीड़ा को बयान किया गया। उसी पीड़ा को लेखक ने संकलित कर लॉकडाउन का भारत रूपी पुस्तक को साकार किया। पुस्तक के हर लेख में लेखक ने अपने मन की भावनाओं को उजागर किया। साथ ही देश के कोने - कोने से पलायन की इस विभीषिका को प्रसिद्ध लेखको ने अपने नजरिए से देख कर सरकार को सजग करते हुए उसके उपाय वह परिणामों से अवगत कराने का प्रयास किया। इं लेखो व विचारों को भी इस पुस्तक म स्थान दिया। जिसमें कई विरोधाभासी विचार, कई समसामयिक विचार व विषयो से सरकार को अवगत कराने का प्रयास किया गया। भविष्य की योजनाओं का विचार भी इसमें रखा गया। महाराष्ट्र के नागपुर से डॉ प्रवीण डबली ने अपनी कलम से 'आ अब लौट चलें' ... लेख के माध्यम से मार्मिक चित्रण कर मजदूरों के भविष्य की योजनाओं का बहुत सुंदर मार्ग बताया। साथ ही लेखक ने डॉ डबली के लेख के साथ साथ व्यंग्य रूप में प्रस्तुत कोरोना जुकाम ' को भी अपनी पुस्तक में स्थान दिया। लॉक डाउन इस संदर्भ ग्रंथ में लेखक ने हर वह घटना जो 20 मार्च से 31 मई के बीच घटित हुई , जिसमें प्रधानमंत्री का संबोधन तिथि , लॉक डाउन के अलग अलग चरणों को तारीख व समय सहित विपक्षी नेताओं के बयान, देश में स्वास्थ्य संबंधी सुविधाओं की दयनीय स्थिति साथ ही सोशल मीडिया, फेसबुक पर लॉकडाउन को लेकर आ रहे विचारों को भी पुस्तक में स्थान दिया। साथ ही लेखक ने कार्टून व चित्रों के माध्यम से भी पलायन के इस चित्र को समझाने का प्रयास किया। लेखक मानते हैं कि लॉकडाउन में मजदूरों के पलायन की स्थिति वह विभाजन के समय पलायन की स्थिति एक जैसी है । हर और देश में मजदूर अपना सफर पैदल नंगे पाव , कड़ी धूप में हजारों किलोमीटर पूरा करते नजर आ रहे थे । उन सारे प्रसंगों को इसमें शामिल कर लेखक ने इसे एक संदर्भ ग्रंथ के रूप में प्रस्तुत करने का प्रयास किया है। कविताओं के रूप में भी कवियों ने अपनी भावनाओं को उजागर करने का प्रयास किया। निश्चित ही लेखक ने सरकार के कान खींच कर उन्हें स्थिति से अवगत कराने का सफल प्रयास किया। लेकिन कहीं ना कहीं लेखक सरकार को भविष्य की योजना समझाने में कम रहें । लेकिन लेखक ने राजनीति की विसंगतियों, देश में विकास की स्थिति पर गहरी चोटकी है व भविष्य जरूरतों पर ध्यान आकर्षित किया है। लेखक का यह प्रयास संदर्भ ग्रंथ के रूप में निश्चित ही आने वाली पीढ़ी को उपयोगी होगा। लेखक के इस प्रयास हेतु उन्हें साधुवाद।
पुस्तक : लॉक डाउन का भारत
लेखक : राजेन्द्र सिंह यादव ' आज़ाद '
प्रकाशक : विपिन प्रकाशन, दौसा (राजस्थान) ।
समीक्षक - डॉ. युगेश्वरी प्रवीण डबली,
अंशकालिक प्राध्यापक,
दयानंद आर्य कन्या महाविद्यालय,
जरीपटका, नागपुर।