विश्व भाईचारा दिवस और स्वामी विवेकानंद
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हाल हि मे ११ सितंबर को विश्व भाईचारा दिवस मनाया गया, जिसकी वजह आज से १२७ वर्ष पुर्व स्वामी विवेकानंद ने ११ सितंबर १८९३ को शिकागो (अमेरिका) में हुए विश्व धर्म सम्मेलन में एक बेहद चर्चित भाषण दिया था। विवेकानंद का वह भाषण विश्व प्रसिद्ध हुआ जिसका मुख्य कारण यह था की अमेरिका जैसे शक्तीशाली देश मे अलग अलग देश एवं धर्म के अनुयायी अपने अपने धर्म को ऊंचा और बाकी धर्म को निचा दिखाने को जद्दोजहद मे थे, वहीं हिंदुस्थान के एक सन्यासी ने अपनी अमोघ वाणी से और अपने असामान्य व्यक्तीमत्व से, "अमेरिका के बहनो और भाइयो, आपके इस स्नेहपूर्ण और जोरदार स्वागत से मेरा हृदय अपार हर्ष से भर गया है"। यह कहकर सबका दिल जीत लिया।
स्वामीजीने किसी भी धर्म के बारे मे अनुचित बात नही की अपितु अपने अद्वैतवाद सिध्दांत से यह बताया की जो धर्म दुनिया को प्रेम एवं मानवता की शिक्षा देता है, जो सहनशील है, जिसमे सभी को समा लेने की शक्ती है, जो किसी और धर्म को निचा नही कहता वह सभी धर्म श्रेष्ठ है, और उन सभी धर्मो को एक जगह जाकर मिलना है, जैसे अलग अलग नदिया सागर मे जाकर मिलती है। साथ हि भगवान श्री कृष्ण द्वारा दिये गये गीता उपदेश का भी ग्यान कराया. उन्होने हिंदुस्थान लौटकर आज के युवाओ को देशभक्ती एवं राष्ट्र निर्माण हेतु आगे आकर इन सब बातो से उपर उठकर राष्ट्र के प्रती अपने कर्तव्य को समझने और उसका निर्वाहण करने की अपील की.
स्वामी जी का जन्म कोलकाता एक अच्छे परीवार मे हुआ, उनका नाम नरेंद्र रखा गया, बचपन से ही अद्भुत ज्ञान के स्वामी थे, उनके पिता एक बडे वकील थे, पिता की ओर से उनपर पाश्चात्य संस्कृती एवं माता की ओर से आध्यात्मिक भारतीय संस्कृती का प्रभाव पडा। एक बार वे अपने पिता के साथ उनके ऑफिस गये थे, वहा उन्होने कतार मे अलग अलग जाती धर्म के लोगो के लिये रखे हुये कई हुक्के देखे, कुतुहल वश जानकारी हासील की और उन्हे आश्चर्य हुआ बचपन से हि उन्होने कभी जाती धर्म नहीं माना। बचपन से ही उनके मन मे ईश्वर के अस्तित्व पर सवाल था, ईस बारे मे उन्होने बहुतोसे चर्चा की, लेकीन उन्हे समाधान नहीं मिला। बाद मे रामकृष्ण परमहंस जी के संपर्क मे आनेपर, उन्हे साक्षात मॉं काली के दर्शन हुये, और ईसी अलौकिक घटना ने उनका जीवन बदल दिया। उन्होने रामकृष्ण परमहंस जी को अपना गुरू मानकर उनके कार्य को दिशा देने हेतू निकल पडे।
भारत भ्रमण एवं ज्ञानप्रचार के दौरान उनकी मुलाकात खेत्री के महाराजा से हुयी, वहा वे उनके मेहमान रहे, ईसी दौरान नरेंद्र की अलौकिक बुद्धिमत्ता और अध्यात्मिक ज्ञान से अविभुत होकर महाराज ने स्वामी विवेकानंद की उपाधी से सन्मानित किया और स्वयं उनके अनुयायी बने।
स्वामी विवेकानंद जी ने अपने गुरू रामकृष्ण परमहंस के नाम से रामकृष्ण परमहंस मठ की स्थापना की और अनेक युवाओ को राष्ट् निर्माण के कार्य मे जोडा, उनकी अनुयायी भगिनी निवेदिता (मार्गारेट) ने उनके कार्य को देशभर मे फैलाने का कार्य किया। स्वामीजी की प्रेरणा से ही महान उद्योजक जमशेदजी टाटा ने भारतीय युवाओ को रोजगार दिलाने के लिये भारत मे नये उद्योगो का निर्माण किया। आज राष्ट्र को समृद्ध एवं महासत्ता बनाने के लिये स्वामी विवेकानंद के विचारो को युवाओ तक पहुंचाना बेहद जरुरी है।
सौ. मंजु प्रकाश हेडाऊ
सामाजिक कार्यकर्ता
अस्तित्व फाऊंडेशन नागपुर.