हमे अपनी बदलनी होगी सोच..
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- शरद गोपीदासजी बागडी, नागपुर, महाराष्ट्र
३ अंतरराष्ट्रीय - १९ राष्ट्रीय पुरस्कार व २१८ संस्थाओं द्वारा संम्मानित लेखक व समाज सेवी
किसी भी समाज का उत्थान - पतन या बदलाव अचानक कुछ दिनों, महीनों में नहीं होता। उसके लिए धीरे धीरे श्रंखलाबद्ध तरीकों से परिस्थितियों का निर्माण होता जाता है। आज जो समस्याएं हमारे सामने आ रही हैं उसकी नींव वर्षों पहले योजनाबद्ध तरीकों से रखी गयीं थी और जाने अनजाने में हम सब ने उस योजनाओं को क्रियान्वित किया। आज की परिस्थितियों, समस्याओं के लिए जाने अनजाने में हम सब नागरिक, राजनेता समाज, देश जिम्मेदार है। आज घड़ा उलटा पडा है, उस पर आप कितना भी ज्ञान रुपी समुद्र( उपदेश, प्रवचन) उड़ेल दो पानी बहता रहेगा व घडा खाली ही रहेगा। आज सबसे पहले जरूरत है हमें उन परिस्थितियों को समझने, स्वीकारने, मानने और सुधारने की।अर्थात हमे अपनी सोच बदलनी होगी। जब नया मकान बनाते हैं तब जमीन की गुणवत्ता समझकर जरूरी ऐतिहात लेते हुए खुदाई करके उसे समतल बनाया जाता है फिर उस पर नयी नींव रखी जाती है। हमारी सबसे बड़ी गलती हुई गुरुकुल, आश्रम शिक्षा बंद करके कोन्वेंट व्यवस्था शुरू करने की। अग्रेजों ने भारत पर राज किया तब उन्हें अपने रोजमर्रा जीवन मे काम करने के लिये क्लर्कों की जरूरत थी जो उनके आदेशों को वगैरह सोचे, समझे पालन करें। यहां भाषा की समस्या आ गयी तब उन्होंने अपनी जरूरत अनुसार द इंगलिश ऐज्युकेशन ऐक्ट का बिल पास करके गुरुकुल प्रथा बंद करके कोन्वेंट ऐज्युकेशन शुरू किया। 1947 मे आजादी के बाद सबसे ज्यादा जरूरत थी द इंग्लिश ऐज्युकेशन ऐक्ट को बंद करके फिर से गुरुकुल शुरू करने की परंतु नागरिकों, नेतृत्व ने इस पर ध्यान नहीं दिया। आज हम छोटे बच्चों को अपने घर मे संस्कृत के श्लोक पढाने के बजाय जैक एंड जिल... पढाकर खुश हो रहे है। गांवों, छोटे शहरों में शिक्षण, रोजगार व्यवस्था नहीं होने से बच्चों को दुसरे शहर, विदेश जाना पड रहा है। हमें बिना किसी पर दोषारोपण करते हुए परिस्थितियों को समझकर मुलभुत समस्याओं का निराकरण करते हुए सारी व्यवस्थाओं को धरातल पर सुधारना जरूरी है। व्यक्ति से परिवार, परिवार से समाज, समाज से देश बनता है। आज अगर हम व्यवस्थाओं को सुधारना चाहते हैं, तो सुधार हम सबको अपने अपने हिस्से का सुधार आप से, अपने घर से करना पडेगा। हम पहले ही बहुत देर कर चुके हैं, आज हम बीज लगाना शुरू करेंगे तब अगली पीढी उस वृक्ष का आनंद लें पायेगी। मुझे जो समझ मे आया मैने लिखने की कोशिश की है, अगर किसी को मेरी कोई बात, विचार से ठेस पहुंची हो तो क्षमा करें।