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अब कोरोना कि लड़ाई जनता के हाथ !


- डॉ प्रवीण डबली, नागपुर, महाराष्ट्र 

कोरोना का प्रकोप दिन - ब - दिन बढ़ता ही जा रहा है। कोरोना यहां हमारे शहर ही नहीं तो देश के अनेक हिस्सों में अपनी पकड़ मजबूत करता जा रहा है। हमारे शहर में भी यह आंकड़ा 50000 के पार हो चुका है।  ऐसे में भी हमारे राजनीतिक यहां लॉकडाउन लगाने के मन स्थिति में नहीं है उन्हें अब भी यही लगता है कि हम लोगों को समझा पाएंगे और लोग समझ कर अपने आप को सुधार लेंगे लेकिन पिछले एक माह में उन्होंने ऐसा करके भी देख लिया परिणाम आज हम 50 हजारी हो गए।
 हर नागरिक के मन मे यह प्रश्न उठ रहा है कि ऐसा क्यों हुआ? क्या लोगों ने नहीं सुना ? क्या प्रशासन इस में कमजोर हो गया ? क्या राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी रही या फिर समन्वय का अभाव ? प्रश्न तो कई है लेकिन इसका उत्तर हर जन के मन में अलग-अलग है, कोई इसे राजनीतिक विफलता मानता है। कोई इसे समन्वय की कमी मानता है । कोई इसे राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी बताता है। कोई इसे प्रशासन की कमजोरी को उजागर करता हुआ बताता है । कई तो ऐसे हैं जो इस प्रशासन और राजनीतिक लड़ाई का परिणाम बता रहे है । फिर वही इसमें जन कहां है, मर तो आखिर जनता ही रही है। माना कि इसमें जनता भी उतनी ही दोषी है, लेकिन उन गरीब जनता का क्या जो कुछ महीनों से घर पर खाली बैठे थे। वह आज काम पर निकले। लेकिन फिर भी व्यापारी उनके पक्ष में नहीं है, उन्हें ही दोषी मान रहे है। लेकिन हमारे राजनीतिज्ञ , व्यापारियों के दबाव में लॉकडाउन से परे हट रहे हैं। परिस्थितियां इतनी बिगड़ी कि आज व्यापारी खुद भी लॉकडाउन को समर्थन देने पर आगे आ रहे हैं । क्या परिस्थिति ने विवश किया या फिर व्यापारी अपना वचन पूरा करने में असमर्थ रहे। कोरोना के विरोध में प्रति रक्षात्मक उपाय करने में व्यापारी विफल रहे। कारण जो भी हो सत्य तो यही है इस शहर में कोरोना ने अपना प्रसार कर हर गरीब, अमीर, व्यापारी, नौकरी पेशा, अधिकारी सभी को अपने शिकंजे में लेना शुरू कर दिया है अब तो सिर्फ आस जन से है। शहर की परिस्थिति विस्फोटक है। यहां मेडिकल सुविधाओं की कमी साफ नजर आ रही है। मरीजों को एक दवाखाने से दूसरे दवाखाने अपने संबंधियों को लेकर भागते हुए देखा जा सकता है। परिस्थितियां है की पैसे के अभाव में कोई भी निजी अस्पताल बेड देने को तैयार नहीं। कोई उस पर नियंत्रण नहीं । आखिर थक हार कर पेशेंट सरकारी अस्पताल में पहुंचता है। वहां भी परिस्थिति वही सबसे पहले तो बताया जाता है बेड खाली नहीं है। आखिर किसी तरह जुगाड़ लगा कर बेड तो मिल जाता है, लेकिन यह विकासशील देश का चित्र नहीं हो सकता!  मुझे याद है पहला लॉकडाउन लगा तो सबने यही कहा था हमें अपनी मेडिकल सुविधाओं को सुधारने के लिए समय मिल गया। लेकिन परिस्थिति में सुधार कम ही नजर आ रहा है मानो कोरोना ने हमें अपनी स्वास्थ्य सुविधाओं का आईना दिखा दिया । ऑक्सीजन की कमी, बेड की कमी, गरीबों के पास पैसों की कमी, पैसों के अभाव में दर-दर भटकने की मजबूरी, मृत्यु पश्चात उसके क्रिया कर्म न कर पाने की मजबूरी क्या यही हम अपना विकास समझे? आखिर हमने विकास कहा किया है? आज समय आ गया है हमें यह सोचने का कि हमारी प्राथमिक आवश्यकता क्या है? क्यों हमने सरकारी अस्पतालों को इतना कमजोर कर दिया है? क्या उसे सक्षम करने में हम पीछे रहें ? यह भी चिंतन का विषय है। अस्पतालों में मची लूट मानसिक आघात कर रही है। क्या महामारी का नियम निजी अस्पतालों पर लागू नहीं होता? क्या सरकार सारे निजी अस्पतालों को अधिग्रहित कर सरकारी दवाखानों में तब्दील कर उसमें जनता का इलाज नहीं कर सकती?  वास्तव में होना तो यही चाहिए तभी हम अस्पतालों की लूट को रोक सकेंगे । यदि सरकारी अस्पताल में इलाज मुक्त हो रहा है तो निजी अस्पतालों को भी एस्मा लगा कर सरकार ने अपने नियंत्रण में लेकर वहां सरकारी खर्चों से ही जनता का इलाज किया जाना चाहिए।  यह समय की मांग भी है और जनता का अधिकार भी। क्योंकि वह सरकार को टैक्स देते हैं और वह इसके अधिकारी भी हैं। अब प्रश्न है.... अब तो जन से है आस ! आज समय आ गया है हमें यह सोचने का कि हमारी प्राथमिक आवश्यकता है क्या है क्यों हमने सरकारी अस्पतालों को इतना कमजोर कर दिया है क्या उसे सक्षम करने में हम पीछे रहें यह भी चिंतन का विषय है अस्पतालों में मची लूट मानसिक आघात कर रही है क्या महामारी का नियम निजी अस्पतालों पर लागू नहीं होता क्या सरकार सारे निजी अस्पतालों में अधिग्रहित कर सरकारी दवा खानों में तब्दील कर उसमें जनता का इलाज नहीं कर सकती वास्तव में होना तो यही चाहिए तभी हम अस्पतालों की लूट को रोक सकेंगे यदि सरकारी अस्पताल में इलाज मुक्त हो रहा है तो निजी अस्पतालों को भी एस्मा लगा कर सरकार ने अपने नियंत्रण में लेकर वहां सरकारी खर्चों से ही जनता का इलाज किया जाना चाहिए यह समय की मांग भी है और जनता का अधिकार भी क्योंकि वह सरकार को टैक्स देते हैं और वह इसके अधिकारी भी हैं। अब प्रश्न है कोरोना कि इस पकड़ को हम कैसे कम कर सकें? निश्चित ही जनता ने भी सरकारी नियमों का पालन कर मास्क, शारीरिक दूरी, स्वच्छता को अपनाना होगा। साथ ही स्वयं संज्ञान लेकर भीड़ से दूर रहकर लोगों को जागृत करना होगा। लेकिन सरकार की भूमिका इसमें महत्वपूर्ण लगती है जो लॉक डाउन हमने शुरू में लगाया था। उसी प्रकार के लॉक डाउन की आवश्यकता महसूस हो रही है।  21 दिन के लॉकडाउन के दौरान जोन वाइज डॉक्टर, नर्स , आशा वर्कर्स,  सामाजिक कार्यकर्ता,  स्वयंसेवक,  नगरसेवको की मदद से हर घर का सर्वेक्षण कर तथा कोरोना बाधित पेशेंट जिन्हें घर में विलगिकरण में रखा गया है, उनसे जानकारी लेकर उनके संपर्क में आए हुए सभी लोगों की तुरंत जांच कर हम कोरोना के प्रभाव को कम कर सकते हैं। यही एकमात्र उपाय आज की परिस्थिति में नजर आ रहा है। साथ ही जहां प्रशासन व राजनीतिज्ञ फेल हो गए हैं वहां अब जन से ही आंस नजर आ रही है ।*

*जनता रहे सावधान !*
आपको बता दें कि पहले कोरोना पेशेंट के घर पर सूचना लगाई जाती थी। यह कोरोना बाधित क्षेत्र है लेकिन अब ऐसा नहीं हो रहा है।  यह प्रशासन में हुए बदलाव का असर है। जिससे आस पड़ोस में किसी को भी उनकी कोरोना होने का जानकारी नहीं है। ऐसी ही एक घटना शनिवार को देखने मिली। कोरोना पॉजिटिव पेशेंट बाजार में भीड़ के बीच सब्जी खरीद रहा था। उसे कुछ लोगों ने टोका भी लेकिन उसने उन्हें नजरअंदाज कर अपनी 7 दिन की सब्जी खरीदने मशगुल रहा। अब आप सोचिए वह व्यक्ति बाजार की इस भीड़ में कितने लोगों को संक्रमित कर गया होगा। साथ ही सब्जी विक्रेता भी उसके द्वारा दिए गए पैसों से संक्रमित हुए होंगे। उसी कोरोना संक्रमित के घर में काम करने वाली बाई को भी उन्होंने संक्रमित होने की जानकारी नहीं दी। वह भी उनके घर काम करने आती रही। यदि वह संक्रमित हुई तो वह अन्य कितने लोगों को संक्रमित करेगी। इस तरह का गैर जिम्मेदाराना बर्ताव भी कोरोना के प्रसार में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। जनता से अपेक्षा है कि वे स्वयं संज्ञान लेकर वह सरकारी नियमों का पालन कर कोरोना के प्रसार को रोकने में सहयोग करें। प्रशासन को भी चाहिए कि वह दरवाजे पर सूचना लगाएं व  उनके संपर्क में रहे। परिस्थिति ऐसी है शहर के संक्रमित के घर पर कोई भी सूचना नहीं है। कई कोरोना पेशेंट के संपर्क में नहीं है, जिससे भी कोरोना के प्रसार में कोरोना का प्रसार बढ़ रहा है। लोग होम विलगीकरण को जिम्मेदारी से नहीं ले रहे हैं। जिससे उन्हें होम कोरनटाइन का मतलब भी नहीं समझ रहा है। प्रशासनिक अधिकारी के तबादले से सिस्टम में बदलाव देखने मिल रहा है। आखिर इसका जिम्मेदार कौन? यह प्रश्न जनता के मन में भी उपस्थित हो रहा है पूरा सिस्टम पहले के मुकाबले लचर नजर आ रहा है। माना कि पेशेंट की संख्या बढ़ रही है। मैन पावर की कमी एक वजह बताई जा रही है प्रशासन की ओर से। आखिर इसका उपाय क्या यह भी चिंतन का विषय है। इसी लिए अब जनता से ही आस है।

*फिर लॉक डाउन नहीं*
नागपुर में हुई मंत्री त्रय की बैठक में लॉक डाउन नहीं लगाने पर निर्णय हुआ। बैठक में भी मास्क लगाना, शारीरिक दूरी व सेनेटाइजर से हाथ की सफाई पर जोर दिया गया। अब तो व्यापारी संगठन खुद ही निर्णय ले की स्वयं घोषित लॉक डाउन  लगाना है या नहीं। सरकार मास्क नहीं पहनने पर 200 की बजाय 500 रुपए जुर्माना वसूलने का निर्णय कर चुकी है।
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