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19 अप्रैल, 2025

आज मुर्शिदाबाद


सुना था 
धर्म मानुष बनाता है 
किंतु आज दिखा 
यह अमानुष ही नहीं,
पिशाच बनाता है।

रोते बिलखते बच्चे 
आँसुओं में डूबे परिजन 
मिटते सिंदूर और 
अस्पष्ट भविष्य 
अमावस सी काली,

रक्तरंजित धरा पर
धू धू फैला हाहाकार 
आज धरम नहीं 
मानवता की है दरकार,

न पूछो 
कौन सही, कौन ग़लत
पूछ लो उन विधवाओं से
दुधमुँहे बच्चों से,
आज कोई भाषण 
नहीं प्रयोजन,

धराशायी है 
आज मानवता
सदमें में है
ईश्वर-अल्लाह-जीसस 
कुछ नहीं इनका अस्तित्त्व 
अगर रोक न पाएँ
यह नग्न पाशविक नृत्य

भले थे हम 
प्रस्तर युग में
तब -
क्योंकि 
तब खोखला 
धरम नहीं था।

- डॉ. शिवनारायण आचार्य 'शिव'
  नागपुर, महाराष्ट्र