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माई बोली मराठी के कार्यान्वयन में निरंतर वृद्धि की आवश्यकता : पद्मश्री डॉ.यू.म.पठान


नागपुर/पुणे। बहुभाषी भारत देश की शक्तिशाली भाषाओं में मराठी भाषा का अपना अनुपम स्थान है। बहुभाषिकता हमारी कमजोरी नहीं, बल्कि वह हमारी शक्ति है। प्रत्येक भारतीय अपनी मातृभाषा को अग्रक्रम दें। हमारे महाराष्ट्र राज्य में माईबोली मराठी का दैनिक व्यवहार एवं कार्यान्वयन में निरंतर वृद्धि की परम आवश्यकता है। इस आशय का प्रतिपादन संत साहित्य के गहन अध्येता एवं सुप्रसिद्ध हिंदी- मराठी साहित्यकार तथा डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर मराठवाडा विश्वविद्यालय, औरंगाबाद- छत्रपति संभाजी नगर, महाराष्ट्र के कला संकाय के पूर्व अधिष्ठाता, मराठी भाषा एवं मराठी अध्ययन मंडल के पूर्व अध्यक्ष पद्मश्री डॉ. यू म. पठान ने किया। विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान, प्रयागराज,उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष एवं नागरी लिपि परिषद, राजघाट,नई दिल्ली के कार्याध्यक्ष तथा लोकसेवा महाविद्यालय के पूर्व प्राचार्य डॉ. शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे, महाराष्ट्र एवं डॉ. मुक्ता कान्हा कौशिक, सह प्राध्यापक - शिक्षा मनोविज्ञान, ग्रेसियस कॉलेज ऑफ़ एजुकेशन, अभनपुर,रायपुर छत्तीसगढ़ द्वारा रविवार 28 जनवरी को सदिच्छा भेंट के अवसर पर वार्तालाप में डॉ.पठान जी ने बहुत सारी बातों को उजागर किया। 

94वें वर्षीय पद्मश्री डॉ.यू म. पठान साहब वर्तमान में बहुत प्रसन्न व संतुष्ट है। आयु के अनुसार शारीरिक क्षीणता भले ही हो पर मन से वे मजबूत और आत्मविश्वासी है। उनकी श्रवण शक्ति बहुत कम हुई है पर स्मरण शक्ति अब भी तरोताजा व अबाधित है। आवाज में हल्कापन है पर उनके उच्चारण में स्पष्टता भी है। हिंदी और मराठी के पूर्णत: ज्ञाता होने के बावजूद डॉ. पठान जी ने अपनी मराठी भाषा का साथ निरंतर रखा है। उनके अध्ययन ,अध्यापन , शोध व कर्म की भाषा सदा मराठी ही रही है। इसलिए वे मराठी में ही संवाद स्थापित करते हैं। माईबोली मराठी के प्रति उनके अंत:करण मे आत्मीयता ,आदर  और प्रेम झलकता है। लगभग पौन घंटा के वार्तालाप में उन्होंने बातों-बातों में यह भी कहा कि चपलगावकर एवं डॉ. नागनाथ कोतापल्ले जैसे विद्यार्थी मुझे मिले। क्षणभर में डॉ. पठान जी ने अपने पूर्व छात्रों की नाम मालिका प्रस्तुत की। उस समय वे गर्व से फूलते रहे। डॉ.शेख को उन्होंने मराठी में कहा शहाबुद्दीन, आपका स्वास्थ्य बड़ा अच्छा है; स्वास्थ्य के प्रति आपने ध्यान दिया है। मेरी नजर ना लगे। इस प्रकार का आत्मीय भाव उन्होंने व्यक्त किया। अंत में उन्होंने चिंता प्रकट करते हुए यह भी कहा कि प्रशासन की दहलीज पर मराठी भाषा अपने प्रश्न को लेकर खड़ी है पर उसमें भी हम जीत जाएंगे।
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